
दूसरे दिन वह अपने नौ माह की बेटी के साथ काम पर गईं तो कुछ लोगों ने आपत्ति की. बोले बच्ची की देखरेख और काम एक साथ संभव नहीं. बात अच्छी नहीं लगी, पर मजबूरी और कुछ करने का जज्बा था. दूसरे दिन वह बच्ची को घर छोड़ काम पर गईं. मन नहीं लगा. सोचती रहीं जिनकी बेहतरी के लिए काम करने की सोची थी. वह तो मां की ममता से वंचित हो जाएंगे. लिहाजा उन्होंने काम छोड़ दिया.

ऊंची उड़ान भरने के लिए चील जैसे मजबूत पंखों का होना जरूरी है, लेकिन गोरखपुर की संगीता पांडेय ने इसे गलत साबित कर दिया. संगीता ने ऊंची उड़ान की एक नई इबारत लिखी है. पंख रूपी आर्थिक तंगी के बाद भी उसने अपने मजबूत हौसलों की बदौलत ऊंची उड़ान भरने में कामयाबी हासिल की. महज 1500 रुपये लेकर साइकिल से शुरू किए गए कारोबार को तीन करोड़ रुपये के पार पहुंचा दिया है.
संगीता ने बताया कि मुझे कुछ करना ही था. क्या करना है यह नहीं तय कर पा रही थी. पैसे की दिक्कत अलग. थोड़े से ही शुरूआत करनी थी. कभी कहीं मिठाई का डब्बा बनते हुए देखीं थीं. मन में आया यह काम हो सकता है. घर में पड़ी रेंजर साइकिल से कच्चे माल की तलाश हुई. 1500 रुपये का कच्चा माल उसी साइकिल के कैरियर पर लाद कर घर लाई. वह बताती हैं कि 8 घंटे में 100 डब्बे तैयार करने की खुशी को वह बयां नहीं कर सकतीं.
नमूने लेकर बाजार गईं. मार्केटिंग का कोई तजुर्बा था नहीं. कुछ कारोबारियों से बात कीं. बात बनीं नहीं तो घर लौट आईं. आकर इनपुट कॉस्ट और प्रति डब्बा अपना लाभ निकालकर फिर बाजार गईं. लोगों ने बताया हमें तो इससे सस्ता मिलता है. किसी तरह से तैयार माल को निकाला.
कुछ लोगों से बात कीं तो पता चला कि लखनऊ में कच्चा माल सस्ता मिलेगा. इससे आपकी कॉस्ट घट जाएगी. बचत का 35 हजार लेकर लखनऊ पहुंची. वहां सीख मिली कि अगर एक पिकअप माल ले जाएं तो कुछ परत पड़ेगा. इसके लिए लगभग दो लाख रुपये चाहिए. फिलहाल बस से 15 हजार का माल लाई.
डिब्बा तैयार करने के साथ पूंजी एकत्र करने पर ध्यान लगा रहा. डूडा से एक लोन के लिए बहुत प्रयास किया पर पति की सरकारी सेवा (ट्रैफिक में सिपाही) आड़े आ गई.
उन्होंने अपने गहने को गिरवी रखकर तीन लाख का गोल्ड लोन लिया. लखनऊ से एक गाड़ी कच्चा माल मंगाई. इस माल से तैयार डब्बे की मार्केटिंग से कुछ लाभ हुआ. साथ ही हौसला भी बढ़ा. एक बार और सस्ते माल के जरिए इनपुट कॉस्ट घटाने के लिए दिल्ली का रुख की. यहां व्यापारियों से उनको अच्छा सपोर्ट मिला. क्रेडिट पर कच्चा माल मिलने लगा.
अब तक अपने छोटे से घर से ही काम करती रहीं. कारोबार बढ़ने के साथ जगह कम पड़ी तो कारखाने के लिए 35 लाख का लोन लिया. कारोबार बढ़ाने के लिए 50 लाख का एक और लोन लिया.
सप्लाई पहले सााइकिल से होती थी फिर दो ठेलों से आज इसके लिए उनके पास इसके लिए खुद की मैजिक, टैंपू और बैटरी चालित ऑटो रिक्शा भी है. खुद के लिए स्कूटी एवं कार भी. एक बेटा और दो बेटियां अच्छे स्कूलों में तालीम हासिल कर रहीं हैं.
पूर्वांचल के हरे बड़े शहर की नामचीन दुकानें उनकी ग्राहक हैं. मिठाई के डिब्बों के साथ पिज्जा, केक भी बनाती है. उत्पाद बेहतरीन हों इसके लिए दिल्ली के कारीगर भी रखीं हैं. वह काम भी करते हैं और बाकियों को ट्रेनिंग भी देते हैं.
प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से 100 महिलाओं एवं एक दर्जन पुरुषों को वह रोजगार मुहैया करा रहीं हैं. पंजाब, पश्चिमी बंगाल, गुजरात, राजस्थान तक वह गुणवत्ता पूर्ण कच्चे माल की तलाश में जाती हैं.