
Political upheaval in Punjab, new political equations will be formed, panthak vote bank will be disintegrated… in pursuit of anti-political advantage
पंजाब की राजनीति में हमेशा पंथक सियासत का दबदबा रहा है। सूबे में 58 प्रतिशत से अधिक पंथक (सिख) मतदाता हैं। इन्हीं मतदाताओं के बूते सोमवार को नए पंथक दल का उदय हुआ जिसकी कमान श्री अकाल तख्त के पूर्व जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह को साैंपी गई।
शिरोमणि अकाली दल (शिअद) में सियासी भूचाल के बाद पंजाब में नए सियासी समीकरण बनेंगे। शिअद में दोफाड़ के बाद जहां सूबे में पंथक वोट बैंक बिखरेगा वहीं विरोधी भी पूरी तरह इसका सियासी फायदा उठाने की फिराक में हैं।
शिअद बादल गुट को अब पंजाब में भी महाराष्ट्र जैसा खेला होने का डर सताने लगा है क्योंकि नई गठित पंथक पार्टी जल्द ही शिअद के नाम और चुनावी चिह्न पर दावा करने की रणनीति बना रही है। इतना ही नहीं पंथक पार्टी के नए सरदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह साफ कह चुके हैं कि सुखबीर बादल पार्टी के समक्ष चुनौती नहीं हैं।
दरअसल, पंजाब की राजनीति में हमेशा पंथक सियासत का दबदबा रहा है। सूबे में 58 प्रतिशत से अधिक पंथक (सिख) मतदाता हैं। इन्हीं मतदाताओं के बूते सोमवार को नए पंथक दल का उदय हुआ जिसकी कमान श्री अकाल तख्त के पूर्व जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह को साैंपी गई। नई पार्टी के गठन से शिअद (बादल) गुट को बड़ा सियासी नुकसान हो सकता है क्योंकि पंथक मतदाता ही शिअद की सबसे बड़ी ताकत हैं।
अब नई पार्टी सामने आने के बाद शिअद के कमजोर होने व बिखरे पंथक मतदाताओं का फायदा साल 2027 के चुनाव में आप, कांग्रेस और भाजपा को मिल सकता है क्योंकि नई पार्टी के बाद शिअद अब चार धड़ों में बंट चुका है।
प्रकाश सिंह बादल ने किया अकाली दल को मजबूत
पहली बार साल 1967 में शिरोमणि अकाली दल के नेता गुरनाम सिंह सूबे के मुख्यमंत्री बने। उसके बाद प्रकाश सिंह बादल ने शिअद को
काफी मजबूत किया। वे पांच बार सूबे के मुख्यमंत्री बने। सबसे लंबे 10 साल से अधिक कार्यकाल वाले सीएम रहने का रिकॉर्ड भी उन्हीं
के नाम है।
पंथक वोट बैंक पर प्रकाश सिंह बादल का खासा प्रभाव था और यही वोटर शिअद का बड़ा वोट बैंक थे लेकिन साल 2017 के बाद से पार्टी के प्रदर्शन में अपेक्षाकृत गिरावट आई। साल 2012 के चुनाव में 56 सीटें जीतने वाला शिअद साल 2017 के चुनाव में 15 सीटों पर सिमट गया। साल 2022 में भी शिअद को बड़ा झटका लगा।
पार्टी बसपा के साथ गठबंधन के बावजूद 3 सीटें ही जीत पाई। अब दोफाड़ के बाद साल 2027 का चुनाव शिअद (बादल) के लिए बड़ी चुनौती खड़ी करेगा। इससे पहले दल को अपने वजूद और पार्टी सिंबल के लिए भी जूझना पड़ सकता है।
पंजाब में जो कुछ चल रहा है इसके पीछे दिल्ली में बैठे बड़े सियासी दल के नेताओं का इशारा है। यह शिअद के साथ-साथ बड़े सिख संस्थानों और सिद्धांतों को कमजोर करने की कोशिश है। नई पंथक पार्टी का गठन होना कौम का बड़ा नुकसान है। दिल्ली वालों का हुक्म है कि पंजाब में शिअद को खत्म करो और ज्ञानी हरप्रीत सिंह भी दिल्ली से चली जा रही चाल का एक मोहरा हैं मगर विरोधी भूल गए हैं कि 105 पुराना शिअद कुर्बानियां देकर बना है। उसकी जड़े इतनी कमजोर नहीं हैं। हमें अपने गुरु पर भरोसा है।








